Monday, 7 July 2014

दुल्हन तो चाहिए पर बेटियां नहीं बचाते हरियाणवी

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का वोट के बदले कुंवारों की शादियां कराने संबंधी बयान भले ही राजनीतिक रूप से तूल पकड़ लिया है, लेकिन सच्चाई यह है कि हरियाणा में कुंवारों की तादाद बढ़ती जा रही है। इसके लिए कोई दूसरा नहीं बल्कि स्वयं हरियाणा के लोग ही दोषी हैं। उन्हें दुल्हनें तो चाहिए पर कोख में पलने वाली बेटियां बचाना मंजूर नहीं है।
प्रदेश में गिरता लिंग अनुपात कुंवारेपन की प्रमुख जड़ है। सुप्रीम कोर्ट की 2006 की हिदायतों के बावजूद राज्य में कन्या भ्रूण हत्या रोकने की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं हुए हैं। राज्य में करीब 15 हजार अल्ट्रासाउंड मशीनें काम कर रही हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के कागजों में इनकी संख्या अंगुलियों पर गिनने लायक है। हाई सोसायटी के लोग ब्लड की जांच के जरिये लिंग जांच करा लेते हैं, लेकिन मध्यम वर्ग के लोग अल्ट्रासाउंड के जरिये पता लगाकर कन्या भ्रूण को पनपने का मौका नहीं देते। राज्य में एक हजार लड़कों के पीछे 879 लड़कियों का लिंग अनुपात है। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना के मुताबिक है। आज एक हजार लड़कों के पीछे लड़कियों की संख्या 850 से 860 तक रह गई है। आबादी के लिहाज से प्रदेश में 32 लाख लड़कियों का अंतर है। यानि कुंवारों की बड़ी फौज तैयार हो चुकी है। इस वर्ग में कोई भी राजनीतिक उलट-फेर करने का पूरा माद्दा है।

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